नाम सिमरन के लाभ

यह लेख ईश्वर (अगम्य, अगोचर, अनंत, असीम, अपरमपार, धन्य-धन्य पार ब्रहम परमेश्वर) एवं गुरु के असीमित गुरु प्रसाद और गुरु कृपा के साथ लिखा गया है।

 

आईए उनके आगे नाम सिमरन के लाभ को समझने के लिए दिव्य समझ और दिव्य ज्ञान के लिए प्रार्थना करेंI।

 

आईए गुरुप्रसाद के लिए प्रार्थना करते हैं।

 

आईए हम सदैव इस नाम एवं नाम-सिमरन के शाश्वत उपहार से बख्शे जाने के लिए प्रार्थना करें ।

 

सर्वशक्तिमान प्रभु के पूर्ण अहसास के लिए नाम एक सीढ़ी है।I नाम वह सीढ़ी है जो हमें अग्रसर करती है:

 

  • शाश्वत सत्य की खोज की तरफ
  • परम तत्व की तरफ,
  • ब्रहम तत्व की तरफ,
  • पूर्ण ज्योत प्रकाश की तरफ,
  • अकाल पुरख (ईश्वर) के निर्गुण स्वरुप की तरफ
  • मन और आत्मा के पूर्ण मौन की तरफ
  • पूर्ण रूप से सच्चा बनने की तरफ
  • सत्यलोक की तरफ

 

नाम सिमरन करने से हम इस सीढ़ी पर चढ़ते रहते हैं और हर कदम के साथ सर्वशक्तिमान के समीप आते जाते हैं। अंतत: हम उनमें अभेद हो जाते हैं I

नाम शाश्वत सत्य है I

नाम सिमरन करने से हम इस शाश्वत सत्य का, स्वयं सर्वशक्तिमान का, अमृत का एवं आत्मरस का अहसास कर सकते हैं।

नाम उच्चतम शाश्वत उपहार है जो कि मनुष्य गुरुप्रसाद से प्राप्त कर सकता है ।

जेवडु आप तेवड तेरी दाति II||

हे ईश्वर! जितने महान आप हो, उतने ही महान आपके उपहार हैं I

(श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी ९ )

 

नाम सिमरन करने से हम उच्चतम शाश्वत सत्य के उपहार का अहसास कर सकते हैं I इस उपहार में शामिल हैं :

  • स्वंय अकाल पुरख (ईश्वर)
  • उनके सभी शाश्वत खज़ाने और
  • उनकी सभी आत्मिक एवं ब्रहम शक्तियां

इसलिए इससे कम किसी चीज़ की मांग या समझौता क्यूँ किया जाए ? हम अपने निरंतर यत्नों के साथ उच्चतम शाश्वत उपहार को प्राप्त कर सकते हैं I हमें दिन प्रतिदिन और सांसारिक वस्तुओं को भूल कर सर्वोच्च शाश्वत भेंट की मांग करनी चाहिए, जिसमे सब कुछ शामिल है| जिसमे पार ब्रहम स्वंय हैं I एक बार जब वो हमारे हो जाते हैं और हम उनका पूर्ण अहसास स्वंय अपने अन्दर कर लेते हैं और उनके बन जाते हैं तब उनकी सारी संपत्ति हमारी बन जाती है I यह नाम सिमरन का सबसे बड़ा लाभ है जिसे ब्यान नहीं किया जा सकता। हालांकि नाम सिमरन के और भी बहुत से लाभ हैं जिनमें से कुछ का संक्षिप्त वर्णन नीचे दिया गया है :

 

आप वर्णन से परे चले जाते हैं

किनका एक जिसु जीअ बसावै II॥

ता की महिमा गनी न आवै ॥

एक कण जिस के हृदय में बस जाता है।

उस की महिमा गिनी नहीं जा सकती है।

(श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी २६२)

 

 

नाम अनंत है, यह स्वंय ईश्वर की तरह अगम्य, अपार, अनंत एवं असीम है। यह ब्रह्माण्ड का मूल है I यह ईश्वर का आदि-जुगादी (युगो-युग) नाम है, जो उन्होंने स्वंय बनाया है। यदि कोई व्यक्ति नाम का एक कण भी अपने हृदय में बसा लेता है तो ऐसी आत्मा का वर्णन करना असंभव है। क्योंकि ऐसी आत्मा संत हृदय वाली बन जाती है और स्वंय सर्वशक्तिमान की तरह अनंत बन जाती है।I ऐसी आत्मा प्रगटयो ज्योत (प्रकट हुई ज्योत) पूर्ण ब्रहम ज्ञानी एवं पूर्ण संत, एक पूर्ण खालसा बन जाती है। नाम सिमरन हमारे लिए उच्चतम स्तर की खुशियाँ ले कर आता है। हमारे सभी दुःख दूर हो जाते हैं और हम सदा के लिए सम्पूर्ण आनंद एवं खुशियों से भर जाते हैं।

 

जन्म और मृत्यु के चक्कर से मुक्ति – जीवन मुक्ति

सबसे बड़ा दुःख जन्म और मृत्यु के चक्र में फंसे रहना है। हम सभी इस चक्र में बहुत लम्बे समय से फंसे हुए हैं।I हम 84 लाख जूनी में अनगिनत जन्मों से भटक रहे हैं। नाम सिमरन ही एक मात्र ऐसी शक्ति है जो हमें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकती है। हम स्वंय को मृत्यु के भय से मुक्त नाम सिमरन के माध्यम से ही करा सकते हैं। इसका अर्थ है कि हम मोक्ष – जीवन मुक्ति नाम सिमरन करने से ही पा सकते हैं।

 

मृत्यु का भय

सबसे बड़ा भय मृत्यु का भय है। I यह एक सर्वव्यापी सत्य एवं तथ्य है। जिसका खंडन नहीं किया जा सकता। I ऐसा भय केवल नाम सिमरन से ही दूर होता है। I वास्तव में जब आप गहरे ध्यान – समाधि एवं सुन्न समाधि में जाते हैं, तब आप आत्मा के शरीर से बाहर होने वाले अनुभवों (आऊट ऑफ़ बॉडी एक्सपीरियंस) का सामना कर सकते हैं। I ऐसे अनुभवों के दौरान आत्मा वास्तव में शरीर को छोड़ जाती है और अपनी आत्मिक अवस्था के अनुसार विभिन्न सूक्षम स्थलों का भ्रमण करती है और आत्मा उच्चस्तरीय आत्मिक संसारों (स्थलों) को देखती एवं अनुभव करती है – जैसे कि सचखण्ड इत्यादि Iयह अनुभव आपको सीख देते हैं कि मरणोपरांत (शारीरिक मृत्यु के बाद) आपके साथ क्या हो सकता है और आपकी आत्मा मरने के बाद कहाँ होगी I इसीलिये संत एवं ब्रहमज्ञानी पहले से ही यह जान लेते हैं कि मरणोपरांत उनकी आत्मा के साथ क्या होगा|

माया पर विजय

नाम सिमरन इतना शक्तिशाली है कि यह हमें हमारे सभी शत्रुओं से बचाता है। हमारे शत्रु कौन से हैं? ये पंच दूत हैं – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार जो कि सभ से दीर्घ मानसिक बिमारीयां आशा और मनशा, निंदा, चुगली, बखीली के साथ ही हैं। नाम हमारे हृदय को इन सभी दीर्घ घातक मानसिक बिमारीयों से बचाने का नुस्खा है। हमारी आत्मा के ये सारे दुश्मन, हमारे और सर्व शक्तिमान के बीच में रोक हैं। नाम सिमरन इन शत्रुओं को मारने के लिए सबसे बड़ा और शक्तिशाली हथियार है। ये शत्रु सचखंड के रास्ते की ओर बड़ी रुकावट हैं और नाम सिमरन इन रुकावाटों को दूर कर देता है। हमारे मन को चेतन्य और ऐसे दुश्मनों के प्रभाव अधीन काम करने से रोक कर नाम सिमरन हमें इन से बचाकर रखता है। हमारा मन हर समय चेतन्य रहता है। हम दिन प्रतिदिन की क्रियाओं में इनके साथ सामना करने के योग्य हो जाते हैं। इस प्रकार उनको हर समय हरा कर जब भी वे हमें धोखा देने का यत्न करते हैं और हम से अमृत चुराने का यत्न करते हैं तब हम उन्हें हरा सकते हैं।

मन के ऊपर जीत

आपका मन आपकी सभी पाँच इद्रीयों को चलाता है और आपका मन अपनी चतुराई के साथ चलाया जाता है। आपकी अपनी चतुराई माया के तीन गुणों: रजो, तमो और सतो के अधीन चलाई जाती है। माया के ऊपर जीत प्राप्त करने से आत्मा माया के चुंगल से परे चली जाती है। यह माया की जंजीरों से मुक्त हो जाती है और आपका मन ब्रह्म ज्ञान के अधीन आ जाता है। असल में आपकी अपनी बुद्धि और मन तब समाप्त हो जाते हैं जब आप रूहानी शिखरों पर पहुँचते हो। तब आपकी सभी पाँच इंद्रीयां सीधे ब्रह्मता के अधीन आ जाती हैं और ब्रह्म ज्ञान आपकी पाँच इंद्रीयों को चलाता है। ये अब और माया के अधीन नहीं रहतीं। यह माया से मुक्ति है। अपने मन के ऊपर काबू पाने से आप अपने मन को परम ज्योत में बदल लेते हो।

मन तूं जोति सरूपु है आपणा मूलु पछाणु ॥

हे मन! तुम ज्योति स्वरूप हो अपने मूल को पहचानो।

(श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी 441)

 

कोई भ्रम या गलतफहमी नहीं

भ्रम, गलतफहमी, विचलन, शक और सभी नाक्रात्मिक शक्तियां जो आपके मन को एवं आत्मा को चला रहीं हैं। आपका मन स्थिर बनना शुरू होता है और धीरे-धीरे आप उन सभी स्थितियों के ऊपर काबू पा लेते हैं  जो आपको विचलित करती हैं। आपके मन की एकाग्रता आपकी आत्मा के विकास के साथ बढ़ जाती है और फलस्वरूप आपकी सभी तरह के भ्रमों और विचलित करनी वाली चीज़ों से मुक्ति हो जाती है।

आपको निर्भय बनाता है

नाम-सिमरन हमें दिन-प्रतिदिन सभी क्रियाओं में निर्भय बनाती है। नाम-सिमरन के साथ हम अपने-आप, दूसरों के साथ और सर्वशक्तिमान के साथ और भी ज़्यादा सत्यवादी बन जाते हैं। हमें सत्य बोलने, सत्य सुनने और सत्य को पेश करने की शक्ति मिलती है। हम सत्य को बोलने और सत्य को पेश करने से डरते नहीं हैं। हम सत् और असत् के बीच के फर्क को पहचानना शुरू करते हैं और अपने आप को असत् कर्मों से बचा लेते हैं।

सभी दुखों और बिमारीयों का खात्मा

सरब रोग का अउखदु नामु॥

(श्री गुरू ग्रंथ साहिब 274)

 

नाम-सिमरन हमारे जीवन से सभी दुखों को समाप्त कर देता है। हम मानसिक तौर पर इतने ताकतवर हो जाते हैं कि हम हर प्रकार के दुखों और घातक मानसिक बिमारीयों को सहने के योग्य हो जाते हैं। हम एक दृष्ट बन जाते हैं और शुद्ध व पवित्र खुशीयां — सत् चित्त आनंद को मानते हैं। जो कि परम ज्योत पूर्ण प्रकाश — अकाल पुरुष का निरगुण स्वरूप है।

अनादि खज़ाने

नाम-सिमरन सारे अनादि खज़ाने और परम अलौकिक शक्तियाँ — जो नौ रिद्धीयों और सिद्धीयों को मिला कर बनती हैं, ले कर आता है। कृपा करके मन में रखें कि ये खज़ाने आपको हर तरह की शक्तियाँ — कौतुक करने की ताकत देती हैं जो कि बड़ी गिनती में लोगों को हमारी ओर खींचतीं हैं। इन शक्तियों का प्रयोग करके हम लोगों की सांसारिक इच्छाएँ पूरी कर सकते हैं, मशहूर हो सकते हैं, बहुत सारा धन कमा सकते हैं और हर तरह के सांसारिक सुख आराम प्राप्त कर सकते हैं। परंतु मन में रखो कि अगर हम इन शक्तियों का प्रयोग एक बार भी करते हैं तब हमारा आत्मिक विकास वहीं पर रुक जाता है और तब हम कभी भी मुक्ति प्राप्त करने के योग्य नहीं रहते। जब आप भक्ति की उच्च अवस्थाओं पर पहुँचते हो तब अकाल पुरुष स्वयं इन शक्तियों का प्रयोग आपके साथ चमत्कार करने के लिए करता है। ऐसे चमत्कार सर्वशक्तिमान के द्वारा गुरू साहिबान के समय बहुत बार किए गये।

ब्रह्मज्ञान

नाम-सिमरन हमारे अंदर ब्रह्मज्ञान और ब्रह्म सूझ ले कर आता है। हम गुरबाणी को सुनना और समझना शुरू कर देते हैं। यह ओर आगे हमें गुरबाणी की शिक्षाओं का अभ्यास हमारे दैनिक जीवन में करने के लिए उत्साहित करता है। हमारा गुरू, गुरबाणी एवं अकाल पुरुष पर भरोसा और दृढ़ता बढ़ती जाती है। सर्व शक्तिमान की हर प्रकार की पूजा और भक्ति नाम-सिमरन में समाई है। इसका भाव है कि नाम-सिमरन सर्व शक्तिमान की सर्व उच्च स्तरीय सेवा है। इस प्रकार करने से हमें यह बोध हो जाता है और हमारे अंदर यह पक्का हो जाता है कि कोई भी सर्व शक्तिमाना जैसा कोई ओर नहीं है और वह सर्व उच्च एवं सब ब्रह्मंड का रचनहार है। हमारे में सर्व शक्तिमान प्रति दृढ़ता और विश्वास विकसित होता है।

अंदरूनी तीर्थ यात्रा

असली तीर्थ यात्रा आंतरिक तीर्थ यात्रा है और ये नाम-सिमरन के साथ होती है। इस का भाव है कि जब हम समाधि में नाम-सिमरन की अलग-अलग अवस्थाओं में से गुज़रते हैं; जब हम रूहानीयत की भिन्न-भिन्न अवस्थाएं जैसे जपुजी साहिब में वर्णन की गई हैं — धर्म खंड, ज्ञान खंड, श्रम खंड, कर्म खंड और सच खंड में से गुज़रते हैं, तब हम स्थूल रूप में ब्रह्म चीज़ों को देखते हैं और ब्रह्मता, पूर्ण प्रकाश, गुर दर्शन, सच खंड दर्शन का अनुभव करते हैं। यह असली तार्थ यात्रा है।

जब हम रूहानीयत की इन अवस्थाओं में से गुज़रते हैं और समाधि एवं शुन्य समाधि में जाते हैं। हम दरगाह द्वारा सर्व शक्तिमान की इस सर्व उच्च सेवा के लिए पहचाने जाते हैं। हम हर हालात में सब्र और संतुष्टी में रहते हैं और हमारे आस-पास हो रही हर घटना परमात्मा का हुक्म प्रतीत होती है। इस का भाव है कि हम अकाल पुरुष का हुक्म पहचानने के योग्य हो जाते हैं, हम किसी भी वस्तु के लिए शिकायत नहीं करते और इस प्रकार हर हालात में चुप और शांत रहते हैं। इस प्रकार करने से हम अपने रूहानी लक्ष्य प्राप्त करने के योग्य हो जाते हैं।

हुकमु बूझि पर्म पदु पाई ॥

(श्री गुरू ग्रंथ साहिब 292)

नाम-सिमरन अनमोल दात है जो हमें अकाल पुरुष के आर्शीवाद के साथ मिलती है और यह ही है जो गुरप्रसादि का भाव है। यहाँ नाम-सिमरन से कोई भी वस्तु कीमती नहीं है। हमें सदा ही ऐसी आत्माओं के आगे शीश झुकाना चाहीए जो नाम-सिमरन की कृपा में हैं।

सर्व शक्तिमान की सर्व उच्च सेवा

प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा॥

(गुरू ग्रंथ साहिब जी 263)

यहाँ सर्व शक्तिमान परमात्मा ने यह बिल्कुल साफ किया है, यहाँ किसी के मन में कोई भी भ्रम नहीं होना चाहीए कि नाम-सिमरन अकाल पुरुष की सर्व उच्च सेवा है। इसका भाव है कि दूसरे सारे धर्म-कर्म नाम-सिमरन से नीचे मुल्य के हैं। अब हम यह तथ्य सुखमनी साहिब से सीखा है तब क्यों हम अपना समय के लिए क्यों नहीं लगाते? जब नाम-सिमरन हमारे लिए सर्व-उच्च और सब से मीठे — खुशीयों का सर्व-उच्च स्तर, पूर्ण चुप, परम ज्योति और पूर्ण प्रकाश दर्शन के फल ले कर आता है। तब हम नाम-सिमरन के ऊपर ध्यान केंद्रित क्यों नहीं करते ?

केवल सुखमनी को पढ़ना ही काफी नहीं है। जिस तरह सुखमनी बताती है उसके अनुसार नाम-सिमरन सर्व-शक्तिमान की सर्व-उच्च सेवा है। यह पूर्ण तत्व ज्ञान और पूर्ण भक्ति के लिए लाज़मी है। वे लोग जो इस ज्ञान की पालना नहीं करते वे धर्म-कर्म जैसे नीच मुल्य की सेवा में लगे रहते हैं।

विनम्रता

नाम-सिमरन हमारे अंदर अति विनम्रता का ब्रह्म गुण लाता है। वह आत्मा जो नाम-सिमरन में लीन रहती है, विनम्रता के साथ भर जाती है। उनकी अति विनम्रता उनको अध्यात्म की शिखरों पर ले जाती है।

ब्रह्म गिआनी सगल की रीना॥

आतम रसु ब्रह्म गिआनी चीना॥

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी 272)

वे सारी सृष्टि के चरणों की धूल बन जाते हैं। हम सब को ऐसी आत्माओं के चरणों में शीश झुकाना चाहिए। ऐसी विनम्रता केवल नाम-सिमरन के साथ आती है। ऐसी विनम्रता अकाल पुरुष की दरगाह की कुंजी है।

सब से बड़ा खज़ाना अकाल पुरुष का नाम ‘१ ओंकार सतिनाम’ है।

अमृतु नामु निधानु है मिलि पीवहु भाई॥

(श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी 318)

जब हम नाम-सिमरन करते हैं, हम अकाल पुरुष के अनमोल खज़ाने ‘१ ओंकार सतिनाम’ के मालिक बन जाते हैं। जब हम इस अनमोल गहने को धारण करते हैं और यह हमारे मन एवं रूहानी हृदय में चला जाता है, तब हम अकाल पुरुष की दरगाह में आदर प्राप्त करते हैं। संत, ब्रह्मज्ञानी जो इस नाम के अनमोल गहने का मालिक होता है इस      ब्रह्मांड की सब से अमीर आत्मा बन जाता है। यहाँ कुछ भी इस खज़ाने से ऊपर नहीं है। ऐसी एक आत्मा :-

  • आदर योग्य बना जाती है
  • ब्रह्मांड में हर स्थान पर आदर प्राप्त करती है
  • अपनी तीर्थ-यात्रा पूरी करती है
  • दरगाह में सफल स्वीकार की जाती है
  • सदा ही उच्च आत्मिक अवस्था में रहती है
  • किसी और वस्तु की ओर देखने की आवश्यकता नहीं रहती
  • हर वस्तु प्राप्त कर ली होती है
  • अनंतता प्राप्त कर ली होती है
  • सारे ब्रह्मांड 14 लोक-प्रलोक का राजा बन जाता है
  • जो बोलता है हो जाता है, उसके शब्द सर्व-शक्तिमान द्वारा सत्कारे जाते हैं
  • कभी नहीं मरते — वे अनादि खुशीयां और अनादि शांति प्राप्त करते हैं
  • हर चीज़ के ऊपर विजय प्राप्त कर लेते हैं
  • सदा ही सर्व-शक्तिमान में लीन रहते हैं
  • हम सब को ऐसी आत्माओं के चरणों की धूल के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इस तरह करने से अकाल पुरुष हमारे ऊपर कृपा करता है और हमें इस गुरप्रसादी खेल में शामिल करता है। यह सब गुर कृपा के बिना नहीं घटित होता। हमें गुर कृपा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और नाम के अनादि खज़ानों की माँग करनी चाहिए।

ब्रह्म गुण

नाम-सिमरन के अनादि खज़ानों के साथ हमारा हृदय बहुत ही शक्तिशाली और विशाल हो जाता है। यह हमारे अंदर दिमाग एवं दिल के सर्व उच्च गुण, नि:स्वार्थ दूसरों के लिए बलिदान की भावना, गरीबों की मदद करना, दूसरों के लिए अच्छा करना, दूसरों की भलाई के लिए सोचना, अपने लिए न जी कर दूसरों के लिए जीना, क्षमा, करूणा, संतोष और दिल की विशालता, आते हैं, मन की पूर्ण शांति एवं चुप आती है। ऐसे गुण हमारे जीवन को समाज के लिए और भी ज़्यादा भाव-पूर्ण बनाते हैं। अंदाज़ा लगाएं कि यदि इस प्रकार का बन जाए तो क्या यह सत्य युग नहीं होगा। यह संत हृदय के महत्वपूर्ण गुण लक्ष्ण हैं और ऐसी आत्माएं सदा दरगाह में आदर प्राप्त करती हैं।      वे अनादि आराम का सर्व उच्च स्तर एवं खुशीयां अपने अंदर भोगते हैं। ऐसी आत्माएं मन के ऊपर विजय प्राप्त कर लेती हैं और उनका जीवन शुद्ध व पवित्र सत्यवादी और आदरयोग्य बन जाता है। ऐसी आत्माएँ जो नाम-सिमरन में लगी हुई हैं वे सर्व-शक्तिमान के सदा ही समीप रहती हैं और सत्य चित्त आनंद में रहती हैं। ऐसी आत्माएँ सर्व-शक्तिमान के साथ रहती हैं और अपने आस-पास घटित होने वाली हर घटना से चेतन्य रहती हैं। इस प्रकार की चीज़ें सारे ब्रह्मांड में घटित हो रही हैं।

कोई इच्छा और चिंता नहीं

आत्मा और मन जो नाम-सिमरन में लीन रहता है, उसके लिए सांसारिक इच्छाओं की पूर्ती की कोई आवश्यकता नहीं रहती। वे हमेशां पूर्ण संतुष्टी में रहते हैं। उस को किसी भी वस्तु की कमी नहीं रहती। कोई सांसारिक आराम उनको विचलित नहीं कर सकता। उनकी सारी चिंताएँ समाप्त हो जाती हैं। यह इस लिए होता है कि वे अपनी सभी क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं को जानते हैं और अकाल पुरुष के हुक्म में रहते हैं। असल में उनका मन और आत्मा पूरी तरह स्थिर बन जाते हैं।

यह बहुत ही उच्च रूहानी अवस्था है जिस में आत्मा रहती है, और यह अवस्था केवल सचखंड में आती है, जब      व्यक्ती पूरी तरह से सत्यवादी बन जाता है और सत्य बोलता, सत्य सुनता और केवल सत्य की सेवा करता है।

 

ऐसी आत्मा सदा अकाल पुरुष की महिमा और गुरू व संगत की सेवा में लगी रहती है। ऐसी आत्मा सदा ही स्थिर रहती है और सर्व-शक्तिमान में लीन रहती है। कुछ भी ऐसी आत्मा को विचलित नहीं करता, जो सदा ही पूर्ण अनादि शांति एवं आनंदित अवस्था में रहती है। उसका दिल सदा ही कमल के पुष्प की तरह खिला रहता है। ऐसी आत्माएँ अपने शरीर में लगातार आधार पर अनादि संगीत की थिड़कन का आनंद लेती हैं और कभी ना खत्म होने वाली अनादि प्रसन्नताओं में रहती हैं। केवल ऐसे व्यक्ति जो अकाल पुरुष द्वारा कृपा प्राप्त करते हैं, नाम-सिमरन के इस अनादि खज़ाने को प्राप्त करते हैं।

दैनिक जीवन संतुलित व मृदु

 

नाम-सिमरन के साथ, हर वस्तु आपके लिए सही स्थान पर होने लग पड़ती है। आपकी सभी मुश्किलें अदृष्य होनी शुरू हो जाती हैं। आपकी इच्छा अनुसार हर वस्तु घटित होने लगती है। आपका जीवन साफ, संतुलित एवं निर्विघ्न बन जाती है। आपके रास्ते में कोई कठिनाई नहीं रहती। आपके आस-पास के लोक आपको अच्छी तरह समझ जाते हैं और आपका साथ देना शुरू कर देते हैं। आपके काम का वातावरण और परिवार का माहौल ओर ज़्यादा सुखपूर्वक बन जाता है। आपको हर चीज़ आसान और सादी लगने लग पड़ती है। परिवारिक झगड़े और अन्य मुश्किलें धीरे-धीरे अदृष्य होने शुरू हो जाते हैं और आपका आस-पास आनंदित और बढ़ीया बन जाता है।

 

आत्मिक संसार के शिखरों — संतों-भक्तों के स्तर पर पहुँचना

सारे ही धर्मों के सारे ही संत और भक्त केवल नाम-सिमरन करने के साथ ही संत और भक्त बने। ऐसी आत्माएँ इन आत्मिक शिखरों पर केवल नाम के अनादि खज़ाने के साथ ही पहुँचीं जो उन्होंने सारा जीवन नियमित नित्यक्रम के साथ किया।

इस प्रकार ये आत्माएँ आत्मिक तौर पर इतनी शक्तिओं वाली बनीं और सर्व-शक्तिमान के साथ एक बनीं। यहाँ कई आत्माएँ हैं जिनकी वाणी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में हमारे दस गुरू साहिबान के साथ दर्ज है। इनमें से कुछ हैं — संत कबीर जी, भक्त रविदास जी, भक्त नामदेव जी, भक्त बाबा फरीद जी, भक्त पीपा जी, भक्त सैन नाई जी, भक्त बेणी जी तथा कुछ और।

ये सभी आत्माएँ आध्यात्मिकता के शिखरों पर पहुँचीं और अकाल पुरुष में लीन हो गईं एवं परम श्रेणी (पद) को प्राप्त किया तथा पूर्ण ब्रह्मज्ञानी बने। ऐसी आत्माओं को प्रकट ज्योति पूर्ण ब्रह्मज्ञानी भी जाना जाता है।

ऐसी आत्माएँ दशम पातशाह जी के बाद भी इस धरती पर आती रहीं हैं। उनमें से कुछ हैं संत बाबा नंद सिंघ जी, संत बाबा ईशर सिंघ जी और संत बाबा अतर सिंघ जी।

ऐसी आत्माएँ अभी भी मौजूद हैं और सर्व-शक्तिमान की सर्व-उच्च स्तरीय सेवा नाम-सिमरन में लगी हुई हैं। वे आने वाले युगों में संगत को आत्मिक ऊर्जा एवं मार्गदर्शन देती रहेंगीं। उनमें से कुछ इस वर्तमान में भी हैं। वे संगत की सेवा कर रही हैं और आने वाले युगों में इस संसार पर आतीं रहेंगीं।

हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे॥

(श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी 451)

नाम-सिमरन के लाभ अभिव्यक्त नहीं किए जा सकते। हमने आपको एक झलक मात्र देने का यत्न किया है कि क्या घटित होता है जब आप नाम-सिमरन करते हो। असल में इन लाभों समझने के लिए इनको स्थूल रूप में अनुभव एवं महसूस करने की आवश्यकता होती है। ऊपर दी गई व्याख्या केवल इस ब्रह्म अनादि कृपा का रस है। आपको नाम-सिमरन शुरू करने करने के लिए उत्साहित करने के लिए गुरप्रसादि है। तब आप इसके असंख्य फलों को प्राप्त करोगे और अपने मनुष्य जीवन को सफल बनाओगे। केवल शर्त यह है कि पूरी तरह से गुर तथा गुरू के आगे समर्पण कर दें एवं पूर्ण भरोसा, यकीन, श्रद्धा, दृढ़ता और विश्वास गुर, गुरू व गुरबाणी में रखें।

 

दासन दास